Wednesday, November 5, 2008

Dil ke zakhm ko dho lete hain


ग़ज़ल

दिल के ज़ख्म को धो लेते हैं
तन्हाई में रो लेते हैं

दर्द की फसलें काट रहे हैं
फिर भी सपने बो लेते हैं

जो भी लगता है अपना सा
साथ उसी के हो लेते हैं

दीवानों सा हाल हुआ है
हंस देते हैं, रो लेते हैं

'दोस्त' अभी कुछ दर्द भी कम है
आओ थोडा सो लेते हैं



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