ग़ज़ल
क्यूँ इसे हसरतो मातम में गुज़ारा जाए
ज़िन्दगी को नए ख्वाबों से संवारा जाए
रात तारीक है, रस्ता भी है अनजान तो क्या
आओ चल कर किसी जुगनू को पुकारा जाए
मैं तेरे साथ रहूँ, तू भी मेरे साथ रहे
जिस तरह साथ ही दरया के किनारा जाए
तुझ से ए दोस्त नए रंग ए सुखन मुझको मिले
किस तरह ये तेरा एहसान उतारा जाए
इक तमन्ना है येही, जब से मिला है कोई
ज़िन्दगी फिर तुझे इक बार गुज़ारा जाए
आओ ए 'दोस्त' नए दौर काम आगाज़ करें
अब ना माजी क। कोई दर्द उभारा जाए
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