Wednesday, November 5, 2008

Zindagi ko Naye KhwaboN se SaNwara Jaye

ग़ज़ल
क्यूँ इसे हसरतो मातम में गुज़ारा जाए
ज़िन्दगी को नए ख्वाबों से संवारा जाए
रात तारीक है, रस्ता भी है अनजान तो क्या
आओ चल कर किसी जुगनू को पुकारा जाए
मैं तेरे साथ रहूँ, तू भी मेरे साथ रहे
जिस तरह साथ ही दरया के किनारा जाए
तुझ से ए दोस्त नए रंग ए सुखन मुझको मिले
किस तरह ये तेरा एहसान उतारा जाए
इक तमन्ना है येही, जब से मिला है कोई
ज़िन्दगी फिर तुझे इक बार गुज़ारा जाए
आओ ए 'दोस्त' नए दौर काम आगाज़ करें
अब ना माजी क। कोई दर्द उभारा जाए

No comments: