Tuesday, January 6, 2009

Ham ko jeenay ka hunar aaya bohut der ke baad



ग़ज़ल

हम को जीने का हुनर आया बहुत देर के बाद
ज़िन्दगी, हमने तुझे पाया बहुत देर के बाद

यूँ तो मिलने को मिले लोग हज़ारों लेकिन
जिसको मिलना था, वही आया बहुत देर के बाद

दिल की बात उस से कहें, कैसे कहें, या न कहें
मस - अला हमने ये सुलझाया बहुत देर के बाद

दिल तो क्या चीज़ है, हम जान भी हाज़िर करते
मेहरबान आप ने फरमाया बहुत देर के बाद

बात अश आर के परदे में भी हो सकती है
भेद यह 'दोस्त' ने अब पाया बहुत देर के बाद

2 comments:

ABDUL REHMAN said...

है दोस्त मोहम्मद की ग़ज़ल वक़्त की आवाज़
हर शेर मे इसके है कहीँ सोज़ कहीँ साज़

डा. अहमद अली बर्की आज़मी

Dost Mohammed Khan said...

Thanks a lot for such a nice comment.